उज्जैन /लोकेशन
पंकज शर्मा पत्रकार


कभी-कभी विचार आता है कि अंग्रेज कितने साहसी और बुद्धिमान रहे होंगे, जिन्होंने एक ठण्डे से प्रदेश से निकलकर, अनजान रास्तों और अनजान जगहों पर जाकर लोगों को अपना गुलाम बनाया। देखा जाए तो ब्रिटेन की जनसंख्या और क्षेत्रफल भारत के गुजरात राज्य के ही बराबर है। लेकिन उन्होंने दशकों नहीं शताब्दियों तक दुनिया को गुलाम बनाए रखा।

भारत की करोड़ों की जनसंख्या को मात्र कुछ लाख या हजार लोगों ने सदियों तक गुलाम बनाकर रखा, और केवल गुलाम ही नहीं बनाया बल्कि खूब हत्यायें और लूटपाट भी की। उनको अपनी कौम पर कितना गर्व होता होगा कि हम मुठ्ठी भर लोग सदियों तक दुनिया के देशों को नाच नचाते रहे।

भारत के एक जिले में शायद ही 50 से अधिक अंग्रेज रहे होंगे। लेकिन लाखों लोगों के बीच, अपनी धरती से हजारों मील दूर आकर, अपने से संख्या में कई गुना अधिक लोगों को इस तरह गुलाम रखने के लिए उनमें अद्भुत साहस रहा होगा।

अरब के रेगिस्तान से कुछ भूखे लुटेरे और आततायी आए, और उन्होंने भी हमको लूटा, मारा, और महिलाओं के साथ अन्य पैशाचिक कर्म किये। हम वहाँ भी नाकाम रहे, उन्होंने हमारे मन्दिर तोड़े, स्त्रियों से बलात्कार किये, लेकिन हमने क्या किया? पहले दिन में विवाह होते थे, उनके भय से हम रात को चुपचाप विवाह करने लगे। जब वे कन्याओं को उठा ले जाने लगे तो हम बचपन में ही शादी करने लगे।

और.... अगर उसमें भी असुरक्षा होने लगी तो हम बेटी को पैदा होते ही मारने लगे, लेकिन यही कठोर सच्चाई है।

हमारे ऊपर जब आक्रमण हो रहे थे और जब हम युद्धकाल से गुजर रहे थे, हमारी बहुसंख्यक जनसंख्या इस मानसिकता में थी कि "कोउ नृप होइ हमें का हानी"। तात्पर्य कि आम आदमी को युद्ध से, राज्य से, राजा से कोई सरोकार नहीं था। उनकी यही सोच थी कि यह सब तो क्षत्रियों के काम हैं, उनको करना है तो करें, नहीं करना तो न करें।

आज इजरायल बुरी तरह शत्रुओं से घिरा हुआ है लेकिन सुरक्षित है, क्योंकि वहाँ के प्रत्येक व्यक्ति पर देश और धर्म की सुरक्षा का दायित्व है।।।

डॉ. अम्बेडकर का वह कथन सोचने पर मजबूर का देता है कि यदि समाज के एक बड़े वर्ग को युद्ध से दूर नहीं किया गया होता तो भारत कभी गुलाम नहीं बनता।

आप स्वयं विचार करके देखिए कि आताताइयों,  से जिस तरह क्षत्रिय लड़े, अगर पूरा हिन्दू समाज लड़ा होता तो क्या हम कभी गुलाम हो सकते थे?

आज भी कुछ नहींं बदला है, मुगलों और अंग्रेजों का स्थान एक खास वर्ग ने ले लिया है, और वामपंथियों/सेकुलरों के रूप में खतरनाक गद्दारों की फौज भी खड़ी हो गई है। लेकिन सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि हम आज भी बंटे हुए हैं, 100 करोड़ होकर भी मूक दर्शक बने हुए हैं।

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