भोपाल। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भाजपा को जिताने के लिए जी तोड़ मेहनत करने वाले कार्यकर्ताओं को पार्टी अब सरकारी मशिनरी (एल्डरमैन, समितियों)का हिस्सा बनाने जा रही है। इसके लिए जिलाध्यक्षों से पार्टी के समर्पित और कर्मठ कार्यकर्ताओं का नाम मांगा गया है। गौरतलब है कि भाजपा कैडर बेस पार्टी और कार्यकर्ता पार्टी की रीढ़ माने जाते हैं। इसलिए पार्टी की कोशिश है कि कार्यकर्ताओं को सरकार में जिम्मेदारी देकर उनका मनोबल बढ़ाया जाए।
जानकारी के अनुसार, प्रदेश भाजपा कार्यालय में आयोजित वरिष्ठ नेताओं की बैठक के बाद जिलाध्यक्षों व जिला प्रभारियों के साथ एक अलग बैठक हुई। इस बैठक में जिलाध्यक्षों को कहा गया है कि वे जिले में सभी नेताओं से समन्वय करके अलग-अलग समितियों में नियुक्ति के लिए कार्यकर्ताओं के नाम तय करके प्रदेश संगठन को भेजेंगे। जिन्हें विभिन्न समितियों में पदाधिकारी बनाया जाएगा। दरअसल, भाजपा अब अपने दस हजार से ज्यादा सक्रिय कार्यकर्ताओं को सरकार में एडजस्ट करने की तैयारी कर रही है। सभी नगरीय निकायों में एल्डरमैन से लेकर कॉलेजों की जनभागीदारी समितियों, दीनदयाल अंत्योदय समितियों सहित अन्य संमितियों में पार्टी कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
कार्यकर्ताओं की सत्ता में भागीदारी का इंतजार
जानकारी के अनुसार, नई सरकार के गठन के बाद से कार्यकर्ताओं की सत्ता में भागीदारी का इंतजार हो रहा है। पार्टी ने संकेत दिया है कि एक-दो दिन में मंत्रियों को जिलों के प्रभार बंट जाएंगे। इसके बाद जिलों की कोर कमेटियों का भी पुनर्गठन होगा। चुनाव में मैदान में काम करने वाले कार्यकर्ताओं की शिकायत होती है कि सांसद, विधायक और मंत्री बन जाने के बाद अन्य नियुक्तियों को टाला जाता है। संगठन इस बार इस मामले में देरी करने के मूड में नहीं है। सरकार के विभिन्न विभागों की हर स्तर की समितियां जहां अशासकीय सदस्य नियुक्त करने का प्रावधान है उनमें पार्टी कार्यकर्ताओं को नियुक्त किया जाएगा। इसके लिए जिलाध्यक्ष से लेकर पार्टी के सीनियर नेता प्रशासन से संपर्क करेंगे ताकि हर स्तर पर नियुक्ति की प्रक्रिया के अनुसार कार्रवाई की जा सके।


दो दशक बाद पहल
भाजपा सरकार के पिछले करीब दो दशक में यह पहला अवसर होगा, जब सत्ता में कार्यकर्ताओं की भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है। लगभग 33 साल पहले तत्कालीन सुंदरलाल पटवा सरकार में ये समितियां बनाई गई थीं। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में आए विपरीत परिणाम और कार्यकर्ताओं में उपजे असंतोष से सीख लेते हुए मप्र में कार्यकर्ताओं की सरकार में भागीदारी सुनिश्चित करने की तैयारी कर रही है। पार्टी की योजना है कि अगले छह महीनों में ग्राम पंचायत से लेकर राजधानी तक कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाकर उन्हें जिम्मेदारी दे दी जाए। मप्र भाजपा के प्रदेश मंत्री रजनीश अग्रवाल का कहना है कि प्रदेश सरकार के विविध प्रकार के सार्वजनिक उपक्रम समितियां मंडल निगम में अशासकीय सदस्यों की नियुक्तियां की जाती है। यह शासन के नियम अनुसार होती हैं। वास्तव में यह प्रक्रिया जनता और सरकार के बीच पुल का कार्य करती हैं। शासन की गति तेज होती है। अंत्योदय समितियां और सहकारिता उनमें एक हैं। इनमें कौन लोग होंगे, कब होगी और पद्धति क्या होगी यह तय करने का अधिकार प्रदेश सरकार को है।


 दीनदयाल अंत्योदय समितियों का होगा गठन
 गौरतलब है कि कार्यकर्ताओं के बल पर भाजपा बड़ी पार्टी बनी है। इसलिए सत्ता में कार्यकर्ताओं की भागीदारी बढ़ाने के मॉडल पर काम कर रही भाजपा सरकार ने सरकारी योजनाओं की राजधानी से ग्राम पंचायत स्तर तक निगरानी के लिए दीनदयाल अंत्योदय समितियों के पुर्नगठन का रास्ता साफ कर दिया है। दीनदयाल अंत्योदय समितियों में राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री और जिला स्तर पर प्रभारी मंत्री अध्यक्ष होंगे। हर स्तर पर गठित समितियों में एससी और एससी वर्ग की महिलाओं के लिए पद आरक्षित रहेंगे। पहले चरण में गांव से राजधानी भोपाल तक दीनदयाल अंत्योदय समितियों का गठन किया जाएगा। राज्य स्तरीय समिति में यथासंभव हर वर्ग की प्रदेश में जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। इसके जरिये पांच लाख भाजपा कार्यकर्ताओं को सत्ता में भागीदार बनाया जाएगा। वर्ष 1991 में भाजपा की सरकार के दौरान ये समितियां काम करती थीं। नए मॉडल में समितियां राज्य, जिला, नगर, विकासखंड और ग्राम पंचायत स्तर पर होंगी। प्रदेश में पंचायतों की बड़ी संख्या होने और जिला व राज्य स्तर पर इन समितियों के गठन से भाजपा से जुड़े कार्यकर्ता इस काम से जुड़ जाएंगे।


अफसरों की शिकायत पहुंची मुख्यालय
भाजपा कार्यालय में हुई बैठक में नेताओं ने संगठन से अफसरों की शिकायत भी की। पूर्व विधायक और पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष ने बैठक में कहा कि मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों वीसी में अफसरों को विधायकों से समन्वय बनाने को कहा। इसका असर यह हो गया कि अफसर विधायकों की सुन रहे हैं, लेकिन जिलाध्यक्ष व अन्य कार्यकर्ताओं की बात नहीं सुनी जा रही। उन्होंने सुझाव दिया कि मुख्यमंत्री को अफसरों को स्पष्ट बताना चाहिए कि उन्हें संगठन से भी समन्वय करना होगा। मुकेश चतुर्वेदी जब यह बात कह रहे थे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी बैठक में मौजूद थे। चतुर्वेदी के इतना कहते ही अन्य जिलाध्यक्षों ने भी कहा कि अफसर सुनते नहीं हैं।