भगवान परशुराम विशाल शोभायात्रा
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पत्रकार पंकज शर्मा
उज्जैन ।1111 ध्वज के साथ धूम धाम से निकली उज्जैन में परशुराम शोभायात्रा | सभी समाजजनो ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और समझ को एक रहने के लिए प्रेरित किया | आज भगवान परशुराम जयंती पर मीडिया प्रवक्ता समूह दुवारा सफल सन्देश अपने पाठकों के लिए | हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम जयंती मनाई जाती है। इसी तिथि पर अक्षय तृतीया का त्योहार मनाया जाता है। इस बार 03 मई 2022 मंगलवार को ये शुभ अवसर परशुराम जयंती आया है। इस दिन भगवान परशुराम की पूजा विधि-विधान के साथ की जाती है और शोभा यात्राएं निकाली जाती हैं।भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्राण कुल में हुआ था,लेकिन उनका स्वभाव और गुण क्षत्रियों जैसा था। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार सात ऐसे चिंरजीवी देवता हैं, जो युगों-युगों से इस पृथ्वी पर मौजूद हैं। इन्हीं में से एक भगवान विष्णु के छठेअवतार भगवान परशुराम भी हैं।
आइए जानते हैं हमसे की भगवान परशुराम के जीवन से जुड़ी कुछ बातें...
1.न्याय के देवता :परशुराम भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। उनका जन्म भगवान श्रीराम के जन्म से पहले हुआ था। मान्यता है कि भगवान परशुराम का जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन-रात्रि के प्रथम प्रहर में हुआ था। परशुराम जी के जन्म समय को सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है। भगवान शिव के परमभक्त परशुराम जी को न्याय का देवता माना जाता है।
2.गणपति को भी दिया था दंड : पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम के क्रोध से स्वयं गणेश जी भी नहीं बच पाये थे। ब्रह्रावैवर्त पुराण के अनुसार, एक बार जब परशुराम जी भगवान शिव के दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचे तो भगवान गणेश जी उन्हें शिव से मुलाकात करने के लिए रोक दिया। इस बात से क्रोधित होकर उन्होंने अपने फरसे से भगवान गणेश का एक दांत तोड़ दिया था। जिसके बाद भगवान गणेश एकदंत कहलाने लगे।
3. हर युग में रहे मौजूद :रामायण और महाभारत दो युगों की पहचान हैं। रामायण त्रेतायुग में और महाभारत द्वापर में हुआ था। पुराणों के अनुसार एक युग लाखों वर्षों का होता है। ऐसे में देखें तो भगवान परशुराम ने न सिर्फ श्री राम की लीला बल्कि महाभारत का युद्ध भी देखा।
4.भगवान कृष्ण को दिया चक्र :रामायण काल में सीता स्वयंवर में धनुष टूटने के पश्चात् परशुराम जी जब क्रोधित हुए और उनका लक्ष्मण से संवाद हुआ तो उसके बाद भगवान श्री राम ने परशुराम जी को अपना सुदर्शन चक्र सौंपा था। वही सुदर्शन चक्र परशुराम जी ने द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण को वापस किया। शास्त्रों में अक्षय तृतीया को विशेष अबूझ मुहूर्त कहा गया है। इस विशेष दिन पर शुभ कार्य करने, शुभ खरीदारी करने और दान करने की विशेष महत्व होता है।