उदयपुर । जैन समाज आगामी 20 जुलाई से शुरू हो रहे चातुर्मास के दौरान साधु-साध्वी 4 माह तक एक ही स्थान पर आत्मसाधना करेंगे और कराएंगे। जिससे प्रवचनों और त्याग-तपस्याओं का वातावरण बनेगा। जैन संतों में यह विधान है कि वे चातुर्मास काल में 4 कोस अर्थात शहर के प्राचीन चुंगी नाका से 10 किलोमीटर के दायरे से बाहर नहीं जा सकेंगे। 
उल्लेखनीय है कि पक्खी पर्व होने के कारण चातुर्मास का शुभारंभ 20 जुलाई से हो रहा है। श्रमण डॉ पुष्पेंद्र ने बताया कि चातुर्मास के दौरान संस्कार, संस्कृति, सदाचार और संयम पालन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। श्रद्धालुओं एवं अनुयायियों को व्रत नियमों पर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है। चातुर्मास के दौरान संत लोगों को नियमित प्रवचन और प्रेरणा देते हैं। उन्होंने बताया कि चातुर्मास के दौरान खाने में सादा भोजन, गरिष्ठ भोजन का त्याग किया जाता है। वे जमीकंद (आलू, प्याज, लहसुन, अदरक) का उपयोग नहीं करते हैं। पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी तिथि पर श्रावक-श्राविका हरी सब्जी-फलों का पूर्ण त्याग करते हैं। दिन में एक स्थान पर बैठकर एक बार भोजन करते हैं। उपवास के दौरान खाना नहीं खाते सिर्फ गर्म पानी पीते हैं। अगले दिन नवकारशी आने के बाद पारणा करते हैं। डा पुष्पेन्द्र ने बताया कि 20 जुलाई को चातुर्मास प्रारंभ से लेकर जप, तप, त्याग, सामायिक, प्रतिक्रमण, संत दर्शन आदि के साथ ही श्रद्धालुओं का उत्साह चरम पर होता है। 21 जुलाई को गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया जाएगा।